प्रतिनिधि
रामगढ़:बचपन में जिनके हाथ में कलम किताब होना चाहिए आज उन मासूम बच्चों के हाथों में टोकरी,कुदाल,देखने को मिल रहा है।जिसके कारण बच्चों का भविष्य चौपट हो रहा है जिसे देखने वाले न तो अधिकारी हैं और न ही जनप्रतिनिधि। रामगढ़ प्रख़ंड में दर्जनों गांवों के सैकड़ों छोटे छोटे बच्चे विद्यालय जाने के बजाय अपनी मां बाप की मजबूरी देखते हुए अपनी मुख मिटाने के लिए कड़कती धूप में ट्रैक्टर में काम कर ईंट ढुलाई का काम करते देखा जा रहा है।
इसके अलावा छोटे छोटे बच्चों होटलों,किराना दुकानों, मिठाई की दुकानों तथा मकान निर्माण में माथे पर ईंट टोकरी लेकर काम कर रहे हैं ।ऐसे में उन मां बाप से पुछे जाने पर कि बच्चों को विद्यालय क्यों नहीं भेजते हैं ज़बाब में उन बच्चों के मां बाप कहते हैं साहब ग़रीब,और पापी पेट सब कुछ कराने पर मजबुर कर देता है। आज प्रख़ंड में ऐसे हजारों बच्चों के नाम सरकारी विद्यालयों की पूंजी में शोभा बढ़ा रहै है लेकिन आज वही बच्चे विद्यालय जाने के बदले अधिकांश बच्चे बाल श्रमिकों के रुप में रामगढ़ बाजार समेत अन्य जगहों में काम करके अपना तथा अपने बुढे मां बाप का पेट पाल रहै है।
अब सोचने की बात है कि बालश्रमिकों को को बढ़ावा देने में किसका हाथ है क्या प्रशासन को को कोई जिम्मेदारी नहीं कि इस मासुम बच्चे के माथे की टोकरी की जगह कंधे में लटके स्कूली बैग में किताब और कापी होनी चाहिए। बहरहाल रामगढ़ में बाल मजदूरी धरल्ले से चल रहा है जिसपर सरकार, प्रशासन ने को ध्यान देने की जरूरत है ताकि मासुम की जिंदगी संवर सकें.